MP News: मध्यप्रदेश के 5 जिलों का बदलेगा नक्शा, इन जिलों को मिलाकर बनाया जायगा महानगर

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MP News:  मध्यप्रदेश के 5 जिले जिनको मिलाकर महानगर बनाया जा रहा है इन जिलों में इंदौर, देवास, उज्जैन, धार और शाजापुर हैं जो अब मिलकर इतिहास रचने की तैयारी में हैं। मध्य प्रदेश सरकार की बड़ी पहल के तहत इन क्षेत्रों को मिलाकर “इंदौर मेट्रोपॉलिटन रीजन” (Indore Metropolitan Region) की नींव रखी जा रही है। इसका मकसद है भविष्य के इंदौर को वैश्विक मानचित्र पर तेज़ी से उभरता शहर बनाना।

हाल ही में एक प्रतिष्ठित संस्था द्वारा की गई रिसर्च में इंदौर के भविष्य को लेकर कुछ चौंकाने वाले बिंदु सामने आए हैं। रिपोर्ट का निष्कर्ष साफ़ कहता है अगर सरकार कुछ अहम क्षेत्रों पर फोकस करे तो इंदौर भी बेंगलुरु की तरह एक तेज़ी से उभरता टेक और बिज़नेस हब बन सकता है।

इसमें प्रदेश की सबसे बड़ी चुनौती है – इंटरनेशनल कनेक्टिविटी, ट्रैफिक मैनेजमेंट और एजुकेशन सिस्टम।

इंदौर को चाहिए इंटरनेशनल कनेक्टिविटी की रफ्तार

इंटरनेशनल अर्बन फोरम (International Urban Forum) नामक संस्था की विशेष रिपोर्ट इस ओर इशारा करती है कि इंदौर को दुनिया से जोड़ने वाली मजबूत हवाई कनेक्टिविटी की ज़रूरत है। रिपोर्ट में बताया गया कि बेंगलुरु में जब एयरपोर्ट को इंटरनेशनल लेवल पर डेवलप किया गया, तो वहां 10 से बढ़कर 50-60 इंटरनेशनल फ्लाइट्स होने लगीं। नतीजा ये हुआ कि आज बेंगलुरु में भारत का 40% विदेशी निवेश (FDI) आता है। वहीं इंदौर का हिस्सा महज़ 1% से भी कम है।

अगर इंदौर को भी इसी तरह के निवेश और ग्रोथ का केंद्र बनाना है, तो यहां कम से कम दो और एयरपोर्ट्स और एक मेगा टर्मिनल का निर्माण होना ज़रूरी है।

क्यों नहीं रुकते टैलेंटेड स्टूडेंट्स

IIT और IIM जैसे प्रीमियर इंस्टीट्यूट्स के बावजूद इंदौर के छात्र दूसरे शहरों या राज्यों की ओर पलायन कर रहे हैं। रिसर्च में यह बात सामने आई है कि पढ़ाई पूरी करने के बाद युवाओं को इंदौर में उनके लायक रोजगार नहीं मिल पाता। नतीजन वे या तो वापस अपने मूल राज्य चले जाते हैं या फिर दूसरे मेट्रो शहरों का रुख करते हैं।

सरकार को चाहिए कि वो 100% मप्र के युवाओं के लिए कुछ ऐसे विशेष संस्थान बनाए जहाँ तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा के साथ रोज़गार का रास्ता भी तैयार हो।

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इंदौर की सबसे बड़ी चुनौती ट्रैफिक 

वाहनों की तेजी से बढ़ती संख्या के बीच इंदौर की सड़कें आज भी उतनी ही संकरी हैं। नई सड़कें भी 50 मीटर से चौड़ी नहीं बन रही हैं, जबकि हैदराबाद में 20 साल पहले ही 150 मीटर चौड़ी सड़कें बन चुकी थीं। पिछले 15 वर्षों में 15 फ्लायओवर ज़रूर बने हैं, लेकिन ज़मीन पर ट्रैफिक की स्थिति अभी भी काफी जटिल है। हर सिग्नल पर जाम और धीमी गति से चलते वाहन शहर की प्रगति में बाधा बनते जा रहे हैं।

महत्वपूर्ण आँकड़े जो सोचने पर मजबूर करते हैं

  • इंदौर की जीडीपी महंगाई की रफ्तार से मेल नहीं खा रही है।
  • शहर में वाहनों की औसत गति 30 से घटकर 20 किमी/घंटा रह गई है।
  • FDI का हिस्सा मात्र 0.2% से 0.4% तक ही सीमित है, जबकि ये आंकड़ा 2-5% होना चाहिए।
  • रहने और खाने का खर्च हैदराबाद और बेंगलुरु की तुलना में कम है, जो बड़ी इंडस्ट्री के लिए मुफ़ीद है।

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इंदौर के पास अब एक ऐतिहासिक मौका है खुद को देश के टॉप 5 मेट्रोपॉलिटन सिटी में शामिल करने का इसके लिए ज़रूरी है कि सरकार और नीति निर्माता एजुकेशन, कनेक्टिविटी और इन्फ्रास्ट्रक्चर पर ठोस कदम उठाएं। अगर यह सही दिशा में हुआ तो इंदौर भी एक दिन भारत का अगला बेंगलुरु बन सकता है।

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  • sirjppharmacycollege Logo

    एक लेखिका और रिपोर्टर के रूप में योजनाओं, शिक्षा, रोजगार, कर्मचारियों और सामाजिक विषयों से जुड़े मुद्दों पर सच और संवेदना के साथ लिखती हूँ। मेरी कोशिश  हर लेख पाठकों के दिल से जुड़े और उन्हें सोचने पर मजबूर कर दे।

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