मध्यप्रदेश प्रमोशन – मध्यप्रदेश में पिछले 9 वर्षों से पदोन्नति (Promotion) की राह देख रहे सरकारी कर्मचारियों के लिए एक बड़ी राहत की खबर है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की अध्यक्षता में मंगलवार 10 जून को हुई कैबिनेट बैठक में एक अहम प्रस्ताव (proposal) को मंजूरी दी गई है। सरकार अब पदोन्नति के नियमों में बदलाव करने जा रही है जिससे हज़ारों कर्मचारियों का रास्ता साफ हो सकता है। यह फैसला सिर्फ प्रशासनिक नहीं बल्कि उन परिवारों के लिए भावनात्मक राहत है जो सालों से उम्मीद लगाए बैठे थे।
SC-ST वर्ग को मिलेगा आरक्षण में प्राथमिकता
सरकार ने स्पष्ट किया है कि पदोन्नति में आरक्षण (Reservation in Promotion) का पहला लाभ अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग के कर्मचारियों को दिया जाएगा।
- SC कैटेगरी को मिलेगा 16% का आरक्षण
- ST कैटेगरी को मिलेगा 20% का आरक्षण
बाकी वर्गों को इसके बाद प्रमोशन का लाभ मिलेगा। अनुमान लगाया जा रहा है कि यह नया नियम जून के अंतिम सप्ताह से लागू हो सकता है।
ना रिवर्ट होंगे ना रिटायर्ड को मिलेगा रिवॉर्ड
सरकार ने इस बार साफ शब्दों में कहा है कि जिनका प्रमोशन पहले ही हो चुका है, उन्हें वापस (revert) नहीं किया जाएगा। और जो कर्मचारी रिटायर्ड हो चुके हैं, उन्हें इस नए नियम का फायदा नहीं मिलेगा। मतलब ये साफ है कि नए नियम केवल मौजूदा कार्यरत कर्मचारियों के लिए होंगे।
9 साल से अटका था प्रमोशन का मामला
MP में पिछले 9 वर्षों से पदोन्नति और उसमें आरक्षण का मुद्दा कोर्ट और कैबिनेट के बीच झूल रहा था। इस दौरान कई अधिकारी बिना प्रमोशन के ही रिटायर हो गए। अब सरकार ने इसका फॉर्मूला फाइनली तय कर लिया है, जिसे मुख्यमंत्री दो बार खुद देख चुके हैं। मंगलवार को सामान्य प्रशासन विभाग के अपर मुख्य सचिव श्री संजय दुबे ने इस प्रस्ताव का प्रेजेंटेशन मंत्रिपरिषद के सामने पेश किया, जिसे सहमति मिल गई है।
कैसे होगी प्रमोशन की लिस्ट तैयार?
सरकार ने दो अलग-अलग सिस्टम से लिस्ट तैयार करने का प्लान बनाया है:
- Class-1 Officers की प्रमोशन लिस्ट Merit-cum-Seniority के आधार पर बनेगी।
- जबकि Class-2 और नीचे के कर्मचारियों की लिस्ट Seniority-cum-Merit फॉर्मूले पर तैयार की जाएगी।
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इसका मतलब ये है कि पदोन्नति का फैसला सिर्फ सीनियरिटी से नहीं, बल्कि परफॉर्मेंस (performance) को भी ध्यान में रखकर होगा। सरकार का यह कदम सिर्फ पॉलिसी बदलाव नहीं, बल्कि उम्मीदों की लौ को फिर से जलाने जैसा है। 9 साल से लंबित इस मसले पर अब जब ठोस कदम उठाए गए हैं, तो हज़ारों कर्मचारियों और उनके परिवारों के चेहरे पर मुस्कान लौटती दिख रही है। यह फैसला एक मजबूत प्रशासनिक इच्छाशक्ति का प्रतीक भी है।