MP News: भोपाल में आज शुक्रवार की शाम इतिहास रच गया। मध्यप्रदेश अब देश का पहला राज्य बन गया है जहां नदियों को सिर्फ जलस्रोत नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर के रूप में देखा जा रहा है। ‘सदानीरा समागम’ जैसे आयोजन से सीएम मोहन यादव ने एक नई जलसंस्कृति की नींव रखी है, जिसका सीधा असर सिर्फ पर्यावरण नहीं, समाज और संस्कृति पर भी गहरा पड़ेगा। और इससे आम जनता सहित पूरे मध्य प्रदेश को लाभ होगा।
MP में जलसंस्कृति की ऐतिहासिक शुरुआत
आज शुक्रवार को भोपाल स्थित भारत भवन में आयोजित ‘सदानीरा समागम’ ने देशभर का ध्यान अपनी ओर खींचा। यह कोई आम समारोह नहीं था बल्कि नदियों, जलस्रोतों और पारंपरिक जलसंरचनाओं को सम्मान देने और पुनर्जीवित करने का एक भावनात्मक और जागरूकता से भरा प्रयास था। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने न सिर्फ इस पहल की शुरुआत की, बल्कि इसे एक सांस्कृतिक आंदोलन में बदलने की दिशा भी दिखाई।
देखें ‘सदानीरा समागम’ क्या है और क्यों खास है?
यह आयोजन जल गंगा संवर्धन अभियान के तहत हुआ, जिसमें कला, साहित्य, विज्ञान और संस्कृति की 200 से ज्यादा हस्तियों ने भाग लिया। ऋषिकेश पांडे द्वारा निर्देशित लघु फिल्म ‘सदानीरा’ से इसकी शुरुआत हुई। इस मंच पर सीएम मोहन यादव ने जल पर केंद्रित चार महत्वपूर्ण किताबों का विमोचन भी किया, जो जल संरक्षण को विचार और विचारधारा में बदलने का पहला प्रयास था।
राज्य की नदियों को ‘बारामासी’ बनाने की योजना
कार्यक्रम का असली केंद्रबिंदु रहा मध्य प्रदेश में ‘बारामासी नदियों’ की परिकल्पना, यानी ऐसी नदियाँ जो सालभर बहती रहें। जलश्रोतों को पुनर्जीवित कर, पारंपरिक जलसंरचनाओं को संरक्षित कर और ग्रामीण जलसंस्कृति को वापस लाकर यह लक्ष्य हासिल किया जाएगा। यह पहल सिर्फ पर्यावरणीय नहीं बल्कि आर्थिक और सामाजिक स्तर पर भी बदलाव लाने वाली साबित हो सकती है।
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मध्य प्रदेश की नदियों को मिला सांस्कृतिक मंच
साहित्यकारों से लेकर वैज्ञानिकों तक, पत्रकारों से अभिनेता और नाट्य कलाकारों तक इस आयोजन में जुड़े। लोगों की भागीदारी भी रही। ये दिखाता है कि जल अब सिर्फ सरकारी नीति नहीं, बल्कि एक जन-आंदोलन का विषय बन रहा है। पहली बार किसी राज्य में जलधाराओं को एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक आधार के रूप में प्रस्तुत किया गया।
मेरे अनुसार मध्यप्रदेश की ये पहल बाकी राज्यों के लिए भी प्रेरणास्त्रोत बन सकती है। अक्सर जल संरक्षण पर योजनाएं बनती हैं, लेकिन वे सिर्फ कागज़ों तक सीमित रह जाती हैं। ‘सदानीरा समागम’ उस सोच को तोड़ता है और नदियों को केवल संसाधन नहीं, जीवन की धड़कन मानता है। जब संस्कृति और प्रशासन एक मंच पर आते हैं, तो बदलाव सिर्फ नीतियों में नहीं, लोगों की सोच में भी आता है। और आने वाले भविष्य के लिए जल संरक्षण बहुत जरुरी है जब हम आज छोटे छोटे इस तरह के प्रयाश करेंगे तभी आगे चलकर हम इसे बढ़ा रूप दे सकते हैं।
क्या आप मानते हैं कि जल संस्कृति को पुनर्जीवित करना जरूरी है? ‘बारामासी नदियों’ जैसी पहल क्या आपके राज्य में भी होनी चाहिए? अपनी राय नीचे कमेंट में ज़रूर दें।