मध्य प्रदेश की आर्थिक हालत दिनों-दिन गंभीर होती जा रही है। राज्य का कुल कर्ज अब उसके वार्षिक बजट से भी ज्यादा हो चुका है, और इस पर पेंशन और ब्याज का बोझ भी तेजी से बढ़ रहा है। हर साल की चुनावी घोषणाएं और नई योजनाएं भले वोट ला रही हों, लेकिन राज्य के खजाने पर इसका भारी असर पड़ रहा है। और यही कारण है कि अब सवाल उठता है कि जनता से वसूला गया पैसा आखिर कहां खर्च हो रहा है। तो आज की इस खबर में हम यही खुलासा करने जा रहे है तो अंत तक इस खबर में बने रहिये।
कर्ज ने पार किया बजट का आंकड़ा
2025-26 के बजट में मध्यप्रदेश सरकार ने ₹4.21 लाख करोड़ का वार्षिक अनुमान पेश किया था। लेकिन अब राज्य का कुल कर्ज ₹4.217 लाख करोड़ तक पहुंच चुका है यानी कर्ज, बजट से भी ₹708 करोड़ ज्यादा है।
यह स्थिति साफ बताती है कि मोहन सरकार को जितनी कमाई हो रही है, उससे कहीं ज्यादा खर्च करने की नौबत आ रही है। और यही अंतर हर साल नए कर्ज लेने की मजबूरी बन जाता है।
हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने 4500 करोड़ रुपये का नया कर्ज दो अलग-अलग अवधि (16 और 18 साल) के लिए लिया है, जो दर्शाता है कि राज्य अपनी आर्थिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कर्ज पर निर्भर होता जा रहा है।
देखें कहां जा रहा है जनता का पैसा?
सबसे बड़ा हिस्सा खर्च हो रहा है कर्ज चुकाने, ब्याज भरने और पेंशन देने में। मध्य प्रदेश के कुल बजट का लगभग 21% हिस्सा सिर्फ इन्हीं तीन जगहों में खत्म हो जाता है। यानी जो पैसा विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य में लगना चाहिए, वो सिर्फ पुराना कर्ज चुकाने में खर्च हो रहा है।
ब्याज और पेंशन की यह धनराशि इतनी बड़ी हो गई है कि मध्य प्रदेश सरकार को सप्लीमेंट्री बजट (अतिरिक्त बजट) का प्रस्ताव तक देना पड़ रहा है। इसके साथ विभागों को साफ कहा गया है कि गाड़ियां या नई मशीनरी खरीदने जैसे खर्चों पर रोक लगाई जाएगी।
कर्ज के बाद भी हो रह लगातार घोषणाएं
मध्य प्रदेश सरकार पर कर्ज होने बावजूद घोषणाओं की झड़ी जारी है। हाल ही में मुख्यमंत्री ने ‘लाड़ली बहना योजना’ के तहत दीपावली से हर महिला को ₹1500 देने का एलान किया। इससे सरकार पर हर बहना के लिए ₹250 महीने का अतिरिक्त खर्च प्रति महिला बढ़ जाएगा और इसका कुल बोझ करोड़ों में होगा।
साथ ही, नए पदोन्नति नियमों के तहत जिन कर्मचारियों को प्रमोशन मिलेगा, उनका वेतनमान भी बढ़ेगा, और उसका खर्च भी राज्य को उठाना पड़ेगा। ऐसे में अगर कमाई के नए स्त्रोत नहीं ढूंढे गए तो राज्य को और कर्ज लेना ही पड़ेगा।
पेंशन बन गई सबसे बड़ी चुनौती
2016-17 में राज्य का सालाना पेंशन खर्च ₹3,793.16 करोड़ था। अब 2025-26 में ये आंकड़ा बढ़कर ₹28,961.15 करोड़ तक पहुंचने की संभावना है — यानी 10 साल में ₹20,167.99 करोड़ की बढ़ोतरी। हालांकि 2005 के बाद से लागू नई पेंशन योजना (NPS) की वजह से भविष्य में बोझ कम हो सकता है, लेकिन तब तक राज्य को पुरानी पेंशन स्कीम के अंतर्गत आने वाले लाखों कर्मचारियों की जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी।
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देखें जनता क्या कहती है
भोपाल के एक रिटायर्ड प्रोफेसर रविशंकर द्विवेदी कहते हैं, “कर्ज लेकर योजनाएं चलाना कोई नई बात नहीं है, लेकिन अब बात सिर के ऊपर से गुजर चुकी है। अगर जल्द आर्थिक संतुलन नहीं बना, तो भावी पीढ़ी को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।” वहीं सोशल मीडिया पर लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि जब सरकार के पास पैसा नहीं है, तो लगातार महंगे वादे क्यों किए जा रहे हैं? जनता यह भी जानना चाहती है कि क्या सरकार विकास से ज़्यादा राजनीति में निवेश कर रही है?
मध्यप्रदेश का आर्थिक संतुलन अब खतरे की सीमा पर है। सरकार को चाहिए कि वह खर्च पर लगाम लगाए, कमाई के स्थायी साधन बनाए और कर्ज लेने की आदत को बदले। आपको क्या लगता है, क्या सरकार सही दिशा में जा रही है या फिर सिर्फ घोषणाओं में उलझी हुई है? नीचे कमेंट करें और अपनी राय ज़रूर बताएं। और ऐसी ख़बरों के लिए जुड़े रहे हमारे साथ।